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फेक फाइव हंड्रेड ( नकली पांच सौ) भाग 2

Posted by शशांक शुक्ला on शनिवार, अप्रैल 10, 2010 in
अपनी सोच को ही वो जवाब देते हुए उसने साफ कह दिया है कि वो आज जो करेगा उसे दुनिया की कोई ताकत रोक नहीं सकती है। एटीएम पहुंचने के बाद सबसे पहले उसमें से वो पर्ची निकालनी ज्यादा उचित समझी जो ये बताये कि असल में उसके पास कितने पैसे बचे है। पर्ची निकली, उसने पर्ची देखी और पहले तो मुस्कुराया लेकिन फिर किसी सोच में पड़ गया। उसके खाते में सिर्फ पांच सौ रुपये ही बचे थे, मनोज खुश तो इस बात से हुआ कि उसके खाते में पांच सौ रुपये मौजूद है लेकिन फिर सोच में पड़ गया कि इतने कम क्यों है ज्यादा होते तो बेहतर होता।

खैर उसने वो पांच सौ रुपये निकाल लिये और वापस घर की ओर चल पड़ा। घर आकर सबसे पहले वो उस दुकान पर गया जहां पर उसकी सबसे नयी पैंट पर रफू हो रहा था। वहां जाकर पर्ची देकर उसने अपनी पैंट मांगी। पैंट तो मिल गयी पर जैसे ही वो पीछे मुड़ा...

अरे भाई साहब......हां आपसे ही कह रहा हूं

हां क्या हुआ....
ये बताइये कि आपको ये नोट किसने दिया है
क्यों क्या हुआ....मैने तो ये नोट एटीएम से निकाला है
नहीं आप झूट बोल रहे है बताइये किसने दिया है ये
अरे नहीं भाई एटीएम से निकला है क्यों हुआ क्या है
ये नोट नकली है.......
क्या ?
हां ये नोट नकली है....ये देखिये इसमें पांच सौ नहीं लिखा है

गांधी जी के फोटो के ऊपर सच में पांच सौ वाली लिखावट नहीं थी जिसको रोशनी में देखा जाता है। उसने फिर अपनी जेब से पांच सौ का नोट निकाला और फिर उसे दिखाया सच में उसके नोट में पांच सौ लिखा था
देखा इसमें लिखा है  ....आपने जो नोट दिया है उसमें कुछ नहीं है
हां आप सही कह रहे हैं....लेकिन हो सकता है कि ये नोट पुराना हो इसलिये
क्या बात कर रहे है आप भाईसाहब मेरे पिता जी बैंक में है
अच्छा तो ठीक है, लाइये दे दीजिये, मै बाद में पैंट ले जाउंगा....


पैंट को वापस देने के बाद वो बुझे मन से वापस घर लौट आया। मन में कई सवाल लिये वो अपने बिस्तर पर लेट गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें क्योंकि ये पांच सौ रुपये उसके आखिरी पांच सौ थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि इन पांच सौ रुपयों का वो क्या करे जिनकी कीमत पांच पैसे भी नहीं है। परेशान से मनोज के दिमाग में अलग अलग ख्याल घर बना रहे थे। काफी सोच विचार के बाद उसने ये फैसला किया कि सिर्फ एक ही बचे हुए इस नोट को वो यूंही नहीं जाने देगा, ये उसकी मेहनत की कमाई है, अगर किसी आदमी ने उसे ये नोट दिया होता तो शायद वो उसको ये रुपये वापस करके पैसे ले लेता लेकिन ये रुपये तो उसे उस मशीन ने दिये थे जिसको वो दोष भी नहीं दे सकता था।  लेकिन करे तो क्या करे, रुपये थे पांच सौ, जो आदमी कई महीनों में पांच सौ रुपये ही जमा कर पाया हो वो ही जानता है उसकी कीमत, वो ये जानता है कि ये पांच सौ रुपये असल में पांच सौ वो वस्तुयें है जिनसे वो अपनी ज़रुरतें पूरी कर सकता है। काफी सोच विचार करने के बाद उसने सोचा कि क्यों न इस नकली नोट को बाज़ार में चला दिया जाये। क्यों न धोखे से इसे कहीं पर चला ही दिया जाये ताकि जो रुपये मिलेंगे कम से कम वो तो असली होंगे औऱ इससे पीछा छूटेगा। लेकिन दूसरी तरफ उसके दिमाग में कई बातें कौंध रही था। मसलन कहीं पकड़े गये तो बेइज्जती तो होगी ही साथ ही पुलिस का भी लफड़ा हो सकता है। या ये भी हो सकता है कि किसी ने पकड़ लिया कि ये नकली नोट है तो फाड़ भी सकता है। तब तो इसकी कीमत कुछ नहीं मिलेगी। सोच सोच कर आखिर में उसने फैसला किया वो इसे किसी न किसी दुकान पर चला देगा। क्योंकि वैसे भी इसकी कीमत एक फूटी कौड़ी भी नहीं है। किसी तरह वो एक कचौड़ी वाले की दुकान पर गया वहां पर काफी देर से खड़े आदमी को देखकर दुकान वाले ने पूछ ही लिया

क्या हुआ भाई साहब कुछ लेना है क्या
नहीं नहीं.....कुछ नहीं बस मै तो ऐसे ही खड़ा हूं
अरे भाई साहब कुछ ले लीजिये...गर्म कचौड़िया है,
नहीं नहीं रहने दो मुझे नहीं लेनी है....मै तो बस किसी का  इंतजार कर रहा था


दुकानदार के सवालों से एक बार को तो मनोज घबरा गया लेकिन खुद को संभालते हुए पास की एक दवाइयों की दुकान पर जाकर खड़ा हो गया। सोचने लगा कि क्या खरीदना चाहिये, उसे पता था कि इसके चांस बहुत कम थे कि नोट चलेगा ,क्योंकि आजकल पांच सौ या कहें कि बड़े नोट लोग चुनचुन कर चेक करते है तभी रखते हैं। लेकन फिर भी मनोज को लग रहा था कि ये नोट चल गया तो उसके मजे आ जायेंगे। उस दवाइयों की दुकान पर भी वो काफी देर तक पूरी दुकान को देखता रहा, काफी देर से परेशान ग्राहक को देखकर दुकानदार में पूछ ही लिया। 

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apne man ki kash masahat ko bade hi achhe dhang se prastut kiya hai aage ke liye dil me utsukta bani rahegi.
poonam

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