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फेक फाइव हंड्रेड ( नकली पांच सौ) भाग 3
Posted by शशांक शुक्ला
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बुधवार, मई 19, 2010
in
कहानी नकली पांच सौ
दुकानदार के सवालों से एक बार को तो मनोज घबरा गया लेकिन खुद को संभालते हुए पास की एक दवाइयों की दुकान पर जाकर खड़ा हो गया। सोचने लगा कि क्या खरीदना चाहिये, उसे पता था कि इसके चांस बहुत कम थे कि नोट चलेगा ,क्योंकि आजकल पांच सौ या कहें कि बड़े नोट लोग चुनचुन कर चेक करते है तभी रखते हैं। लेकन फिर भी मनोज को लग रहा था कि ये नोट चल गया तो उसके मजे आ जायेंगे। उस दवाइयों की दुकान पर भी वो काफी देर तक पूरी दुकान को देखता रहा, काफी देर से परेशान ग्राहक को देखकर दुकानदार में पूछ ही लिया।
कौन सी दवाई चाहियें सर
नहीं मै सिर्फ देख रहा था,
अरे बताइयें मै आपको दे देता हूं
नहीं नहीं ...
वो भाग खड़ा हुआ,उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था । ऐसा लग रहा था कि उसने कोई चोरी कर ली है। फिर एक कोने में खड़ा होकर उसने सोचा कि किसी दुकान पर जाकर खुले पैसे मांग लेता हुं ताकि पूरे पैसे मिल जायेंगे और नोट चल जायेगा। ये सोचकर वो एक डेयरी मालिक के पास पहुंचा और उससे कुछ पूछने ही वाला था एक हवलदार आ गया। मनोज के हाथ पैर डर के मारे थरथर कांपने लगे थे, उसका चेहरा पीला पड़ गया था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। लेकिन मरता क्या न करता वहां पर बिना कुछ पूछे खड़ा रहा। दुकान मालिक से बात करके पुलिस वाला आपनी मोटरसाइकिल से निकल गया।
भाईसाहब खुले पैसे मिल जायेंगे पांच सौ के...
हां क्यों नहीं रुकिये...
ये लीजिये....दीजिये पांच सौ का नोट
डेयरी मालिक ने पांच सौ का नोट लगभग रख ही लिया था. लेकिन रुक गया, पांच सौ का नोट हवा में करते हुये उसने उसे रोशनी में देखा और मनोज को आवाज़ दी,
ओए रुक ये नकली नोट चला रहा है।
अरे नहीं भाई साहब ये नकली नहीं है ...
ये नकली है,,,,वापस कर मेरे रुपये
हार मानकर मनोज को रुपये वापिस करने पड़े। किसी तरह वो जानबूझकर नासमझ बनकर वहां से निकल लिया। किसी तरह नज़रें बचाकर अपने घर की तरफ जाते हुये उसे लगने लगा कि उसके ये नकली पांच सौ उसके किसी काम नहीं आने वाले है। लेकिन उसके पास कोई और रास्ता नहीं था, उसके पास सिर्फ वही पांच सौ का नकली नोट था जिसको उसे कई दिनों तक चलाना था। मनोज ने एक बार के लिये तो सोचा कि उस नकली नोट को फाड़ दे, लेकिन उसके पास उस नोट को चलाने के अलावा कोई चारा नहीं था।
एक रात फिर भूखे पेट सोने के बाद उसने अगली सुबह उस नोट को बैंक में वापस करने की ठानी। सुबह होते ही वो अपने बैंक की तरफ चल दिया। बैंक के गेट पर पहुचने के बाद एक सेंकेड के लिये मनोज रुक गया। दिमाग में अजीब सी उलझन महसूस करने लगा उसे लगा कि हो न हो ये सही कर रहा हूं या नहीं। पता नहीं कौन सी शक्ति उसे महसूस करवा रही थी कि वो बैक में वो नोट वापस न करें। लेकिन हर जगह से असफल हो चुके मनोज के पास और कोई चारा नहीं था। वो ये भी नहीं कर सकता था कि ये पांच सौ का नकली नोट फेंक कर कुछ औऱ पैसे निकाल ले। लेकिन थक हार कर बैंक पहुचें मनोज ने उस नकली नोट को बैंक के अंदर तो ले गया लेकिन उसके मन का डर उसे एक चोर साबित कर रहा था। अंदर जाकर उसने शिकायत की कि एटीएम से उसने पैसे निकाले थे जिसमें से उसे ये पांच सौ का नकली नोट निकला। लेकिन अब कौन उसकी बात पर विश्वास करता, मनोज की हर एक बात सच थी लेकिन अपनी गलती को कौन स्वीकारता है। बैंक ने उसे मना कर दिया कि उनके एटीएम ने नकली पांच सौ का नोट उगला है।बल्कि उनको तो अंधविश्वास था अपने कर्मचारियों पर, मनोज के लिये ये पांच सौ का नकली नोट गले की हड्डी बन गया था जो न तो उससे उगलते बन रहा था और न हीं निगलते। बैक कर्मचारी ने मनोज को सुझाव दिया कि उस नोट को फाड़ दे नहीं तो उसे नकली नोट चलाने के जुर्म में जेल जाना पड़ सकता है। लेकिन मनोज के पास उस पांच सौ के नोट के अलावा और कुछ न था। नोट चलाने के इरादे से उसने बैंक के बाहर जैसे ही कदम रखा ही था कि पुलिस वर्दी में खड़े एक कांस्टेबल ने इसे धर दबोचा, मनोज के पास से जैसे ही उसे पांच सौ का नकली नोट मिला हवलदार का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था।
क्यों बे नकली नोट चला रहा है....
नहीं साहब ये नकली नोट मेरा नहीं है, ये तो मुझे एटीएम से निकला है....
साले मुझे बेवकूफ समझता है....नकली नोट तेरी जेब से निकला है और मुझे कहता है कि मेरा नहीं है चल थाने...
साहब मुझे माफ कर दो ये मेरा नहीं है मुझे जाने दो ......ये नोट ले लो जाने दो......
तेरी तो मुझे रिश्वत देता है.....औऱ वो भी नकली नोट देता है चल तेरी तो ....
साहब मेरे पास और पैसे नहीं है यही एक अकेला नोट है...
अच्छा चल तेरी तो जब थाने में लट्ठ पड़ेगे तब होश ठिकाने आयेंगे।
नहीं साहब मेरी कोई गलती नहीं है मै निर्दोष हूं।
ये तो अब थानेदार साहब तय करेंगे की तू निर्दोष हो या नहीं।
नहीं साहब...
काफी गिड़गिड़ाने का बाद भी उस हवलदार के सर पर कानून सिखाने का भूत चढ़ा था। वो मनोज को पुलिस स्टेशन ले जाता है। पुलिस स्टेशन में थानेदार के सामने मनोज खुलकर सारी बात कह दी लेकिन पुलिस इंस्पेक्टर को उस वक्त उस पर तनिक भी विश्वास नहीं हुआ था। लेकिन उसे एक बात पक्की हो गयी कि मनोज की इसमें कोई गलती नहीं है लेकिन बिना कुछ लिये वो उसे छोड़ने वाला नहीं था।
कौन सी दवाई चाहियें सर
नहीं मै सिर्फ देख रहा था,
अरे बताइयें मै आपको दे देता हूं
नहीं नहीं ...
वो भाग खड़ा हुआ,उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था । ऐसा लग रहा था कि उसने कोई चोरी कर ली है। फिर एक कोने में खड़ा होकर उसने सोचा कि किसी दुकान पर जाकर खुले पैसे मांग लेता हुं ताकि पूरे पैसे मिल जायेंगे और नोट चल जायेगा। ये सोचकर वो एक डेयरी मालिक के पास पहुंचा और उससे कुछ पूछने ही वाला था एक हवलदार आ गया। मनोज के हाथ पैर डर के मारे थरथर कांपने लगे थे, उसका चेहरा पीला पड़ गया था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। लेकिन मरता क्या न करता वहां पर बिना कुछ पूछे खड़ा रहा। दुकान मालिक से बात करके पुलिस वाला आपनी मोटरसाइकिल से निकल गया।
भाईसाहब खुले पैसे मिल जायेंगे पांच सौ के...
हां क्यों नहीं रुकिये...
ये लीजिये....दीजिये पांच सौ का नोट
डेयरी मालिक ने पांच सौ का नोट लगभग रख ही लिया था. लेकिन रुक गया, पांच सौ का नोट हवा में करते हुये उसने उसे रोशनी में देखा और मनोज को आवाज़ दी,
ओए रुक ये नकली नोट चला रहा है।
अरे नहीं भाई साहब ये नकली नहीं है ...
ये नकली है,,,,वापस कर मेरे रुपये
हार मानकर मनोज को रुपये वापिस करने पड़े। किसी तरह वो जानबूझकर नासमझ बनकर वहां से निकल लिया। किसी तरह नज़रें बचाकर अपने घर की तरफ जाते हुये उसे लगने लगा कि उसके ये नकली पांच सौ उसके किसी काम नहीं आने वाले है। लेकिन उसके पास कोई और रास्ता नहीं था, उसके पास सिर्फ वही पांच सौ का नकली नोट था जिसको उसे कई दिनों तक चलाना था। मनोज ने एक बार के लिये तो सोचा कि उस नकली नोट को फाड़ दे, लेकिन उसके पास उस नोट को चलाने के अलावा कोई चारा नहीं था।
एक रात फिर भूखे पेट सोने के बाद उसने अगली सुबह उस नोट को बैंक में वापस करने की ठानी। सुबह होते ही वो अपने बैंक की तरफ चल दिया। बैंक के गेट पर पहुचने के बाद एक सेंकेड के लिये मनोज रुक गया। दिमाग में अजीब सी उलझन महसूस करने लगा उसे लगा कि हो न हो ये सही कर रहा हूं या नहीं। पता नहीं कौन सी शक्ति उसे महसूस करवा रही थी कि वो बैक में वो नोट वापस न करें। लेकिन हर जगह से असफल हो चुके मनोज के पास और कोई चारा नहीं था। वो ये भी नहीं कर सकता था कि ये पांच सौ का नकली नोट फेंक कर कुछ औऱ पैसे निकाल ले। लेकिन थक हार कर बैंक पहुचें मनोज ने उस नकली नोट को बैंक के अंदर तो ले गया लेकिन उसके मन का डर उसे एक चोर साबित कर रहा था। अंदर जाकर उसने शिकायत की कि एटीएम से उसने पैसे निकाले थे जिसमें से उसे ये पांच सौ का नकली नोट निकला। लेकिन अब कौन उसकी बात पर विश्वास करता, मनोज की हर एक बात सच थी लेकिन अपनी गलती को कौन स्वीकारता है। बैंक ने उसे मना कर दिया कि उनके एटीएम ने नकली पांच सौ का नोट उगला है।बल्कि उनको तो अंधविश्वास था अपने कर्मचारियों पर, मनोज के लिये ये पांच सौ का नकली नोट गले की हड्डी बन गया था जो न तो उससे उगलते बन रहा था और न हीं निगलते। बैक कर्मचारी ने मनोज को सुझाव दिया कि उस नोट को फाड़ दे नहीं तो उसे नकली नोट चलाने के जुर्म में जेल जाना पड़ सकता है। लेकिन मनोज के पास उस पांच सौ के नोट के अलावा और कुछ न था। नोट चलाने के इरादे से उसने बैंक के बाहर जैसे ही कदम रखा ही था कि पुलिस वर्दी में खड़े एक कांस्टेबल ने इसे धर दबोचा, मनोज के पास से जैसे ही उसे पांच सौ का नकली नोट मिला हवलदार का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था।
क्यों बे नकली नोट चला रहा है....
नहीं साहब ये नकली नोट मेरा नहीं है, ये तो मुझे एटीएम से निकला है....
साले मुझे बेवकूफ समझता है....नकली नोट तेरी जेब से निकला है और मुझे कहता है कि मेरा नहीं है चल थाने...
साहब मुझे माफ कर दो ये मेरा नहीं है मुझे जाने दो ......ये नोट ले लो जाने दो......
तेरी तो मुझे रिश्वत देता है.....औऱ वो भी नकली नोट देता है चल तेरी तो ....
साहब मेरे पास और पैसे नहीं है यही एक अकेला नोट है...
अच्छा चल तेरी तो जब थाने में लट्ठ पड़ेगे तब होश ठिकाने आयेंगे।
नहीं साहब मेरी कोई गलती नहीं है मै निर्दोष हूं।
ये तो अब थानेदार साहब तय करेंगे की तू निर्दोष हो या नहीं।
नहीं साहब...
काफी गिड़गिड़ाने का बाद भी उस हवलदार के सर पर कानून सिखाने का भूत चढ़ा था। वो मनोज को पुलिस स्टेशन ले जाता है। पुलिस स्टेशन में थानेदार के सामने मनोज खुलकर सारी बात कह दी लेकिन पुलिस इंस्पेक्टर को उस वक्त उस पर तनिक भी विश्वास नहीं हुआ था। लेकिन उसे एक बात पक्की हो गयी कि मनोज की इसमें कोई गलती नहीं है लेकिन बिना कुछ लिये वो उसे छोड़ने वाला नहीं था।