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दुश्मन भगवान (प्रथम भाग)

Posted by शशांक शुक्ला on गुरुवार, जुलाई 08, 2010 in
समय है रात के ग्यारह बजे, लेकिन हर रात की तरह ये रात कुछ ज्यादा ही खामोश। जहां मै  रात की आवाजों को सुनकर पहचान लिया करता था वहीं पता नहीं क्यों आज सब चुप है। चुप भी क्यों हो, जब किसी की किस्मत उसका साथ छोड़ देती है तो भीड़ में भी आदमी को अकेलापन सताता है। दुख है उसके काम पर लेकिन क्या कर सकता था वो । विश्वास  पूरी तरह से उठ चुका था उसका खुदा से ..जिस पर हमेशा खुद से ज्यादा विश्वास किया था आखिर ऐसी क्या गलती थी उसकी, क्या किया था  जो इसकी सज़ा  कुछ इस तरह से मिली।
ये बात है एक ऐसी जगह की जहां कहते है कि सपनों को पंख लग जाते है। जो चाहों मिल जाता है। लेकिन पता नहीं क्यों एक आदमी अपनी शिकायतों का बंडल लेकर भगवान के दरबार में पहुंचा था। लेकिन लगता नहीं कि उसकी सुनवाई होगी। क्या से क्या वो कहता चला गया और भगवान का पूरा दरबार सुनता चला गया लेकिन किसी ने चूं तक नहीं की।
हे प्रभु ये कैसे सज़ा दी है तुमने मुझे, क्या कर दिया था ऐसा मैने, क्या मै भीख नहीं देता इसकी सज़ा थी, या तुझे मानता तो हूं लेकिन तुझे पूजने में कोताही करता हूं इसकी सज़ा थी। अगर इतनी ही चाहत थी पूजे जाने की तो बोला तो होता एक बार। आज भी याद है वो दिन जब लगभग  कई  महीने परेशानियों में बीताकर, बहुत दिनों बाद किसी नौकरी के लिये बुलावा आया था।
हैलो आपको इंटरव्यू के लिये बुलाना चाहता हूं ,क्या आप कहीं पर काम कर रहे है।
नहीं फिलहाल तो नहीं पर आपके साथ काम करने का इच्छुक ज़रुर हूं।
तो फिर कल जाइये।
 ठीक है सर
अगले दिन के इंतजार में तो जैसे दिन काटे नहीं कट रहा था।  वो सिर्फ एक इंटरव्यू कॉल था । लेकिन ऐसा लगा कि जैसे वो मुझे नौकरी के लिये बुला रहे है। लेकिन इंतजार करते करते वो दिन भी आ गया जब मुझे उस आफिस जाना था। मै वहां के एचआर से मिला उन्होने तरह तरह के सवाल पूछे लेकिन अपनी ओर से मैने सभी सवालों के सही जवाब दिये थे। और कमाल की बात है कि उन्हें भी यहीं लगा था कि मैने सही जवाब दिये है। उन्होने ज्वाइनिंग के लिये मुझे फार्म भी पकड़ा दिया। अब तो लगा कि मेरी नौकरी पक्की है, बस मै खुश हो गया। लेकिन अभी तो मेरी फिल्म की कहानी में ट्विस्ट तो आया ही नहीं था, तो उसका आना भी तो ज़रुरी था। ट्विस्ट आया और ऐसा आया कि मेरी बेइज्जती तो हुई ही मेरा आत्मबल भी टूटता सा महसूस हुआ। एचआर मुझे अपने साथ आफिस के फ्लोर पर ले गये जहां पर मुझे शिफ्ट के बारे में समझाया गया। और अपने सीनियर को रिपोर्ट करने और अगले दिन से शिफ्ट में आने की बात भी समझा दी गयी, लेकिन मुझे फिर से एचआर ने अपने कमरे में बुलाया। मैने सोचा कि हो सकता है कि मुझे सिर्फ फार्मेलिटी के लिये बुलाया गया है।लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं था।
एचआर थोड़ा सा परेशान होकर बोला," मै तुमसे माफी मांगता हूं, तुम्हारा समय खराब किया मैने..."

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