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दुश्मन भगवान (अंतिम भाग)

Posted by शशांक शुक्ला on शनिवार, जुलाई 17, 2010 in
ये इस कहानी का अंतिम भाग है...लेकिन सिर्फ भाग अंतिम और लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है...पिछले भाग में किस्मत का मारा एक व्यक्ति अपनी आपबीती भगवान से सामने बताता है....
जिससे शिकायत किया करता था अबकी बार तो उसके खिलाफ ही शिकायत करनी है। आखिर किससे करुं शिकायत। किससे कहूं कि क्यों उसने मुझे तुच्छ बना दिया है। क्योंकि उसने मेरे सोचे गये भविष्य को चूर चूर कर दिया । ये हक तुझको किसने दिया है। सब कहते है कि तू जो करता है सही के लिये करता है। मुझे आज तक अपने इन सवालों का जवाब नहीं मिला कि उसने क्यों मेरी बुद्धि को इस तरह मंद बना दिया मै पढ़ाई में अच्छा न कर सका। उसने क्यों मुझे खेल में आगे बढ़ने नही दिया जबकि मै उसमें कईयों से ठीक था। आज तक उसने मुझे ग्रैजुएशन तक में क्यों लटका रखा है आखिर मै ही क्यों.....
क्या मै इतना मंद बुद्धि हूं कि किसी भी क्लास में ठीक से अपने दम पर पास तक नहीं हो सकता हूं। अगर यही सब झेलने के लिये उसने मुझे यहां भेजा था तो मुझे भेजा ही क्यों, मुझे बनाया ही क्यों। आज भी मै अपने भविष्य को लेकर उतना ही परेशान हूं जितना तब होता था जब अपनी ओर से की गयी मेहनत के बाद भी क्लास में पास तक नहीं हो पाता था। आखिर मैने ऐसी कौन सी गलती की है जिसके लिये भगवान तुम मुझे रह रह कर इतनी टीस दे रहे हो। मेरी मानसिक प्रताड़ना के जिम्मेदार तुम हो। और इसके लिये मै तुम्हें कभा माफ नहीं कर सकता। अगर कोई मुझे ये कहे कि मुझे जो मेरी मेहनत के पैसे आपकी कृपा से मिले थे तो मै उससे साफ कह दूं कि..तुमने सिर्फ आसुंओ के अलावा मुझे कुछ नहीं दिया है। ये जो जिंदगी मुझे तथाकथित रुप से तुमने दी है उसको भी ले लो ...लेकिन मै इसके लिये तुम्हें माफ नहीं कर सकता।
दुनिया में हर कोई तेरे अस्तित्व को स्वीकारता है लेकिन क्यों कभी तुमने कभी उसको कुछ ऐसी नहीं दिया कि उसको यकीन हो जाये कि तुम हो। जो तुझे स्वीकारते है वो भी परेशान होने पर तुझे याद करते है और तुम उनकी ही परीक्षा लेते हो....और ये मूढबुद्धि तेरे मगढ़ंत अस्तित्व को मानकर खुद को सांत्वना दे लेते है। लेकिन कौन जानता है कि तुम परीक्षा लेते हो। जो दूसरों को परेशान करते हैं कभी तुमने उनकी परीक्षा ली है। नहीं तुमने नहीं ली। क्योंकि तुझे ही मानने वाले कहते है कि जो भगवान को मानते है तुम उनकी ही परीक्षा लेते हो। लेकिन जब वो तुम्हे मानते ही है, तुम्हे पूजते ही है तो उनकी परीक्षा की क्या ज़रुरत। अगर तुम्हें मानने के लिये भी इंट्रेंस टेस्ट देने की ज़रुरत है तो मै ये परीक्षा नहीं देना चाहता हूं।
इस मंदिर का पुजारी कहता है कि तुम हर जगह हो फिर भी लोग तुझे देखने और पूजने देश के कोने कोने में क्यों जाते है। यहां तक की मै खुद तुझसे शिकायत करने इस मंदिर में क्यों आया हूं। क्या कहूं किससे कहूं, किससे शिकायत करुं क्योंकि तेरी तो पलकें तक नहीं झपकती है और न ही तेरे शरीर में कोई हलचल होती है। मै हूं मूढ़बुद्धि हूं कि परेशानियों को चरम के बाद मै यहां खड़ा हूं...मुझे ये भी मालूम है कि कही नहीं है .....तेरे मंदिर में खड़े पेड़ को ही पूज लूं तो बेहतर है, क्योंकि कम से कम हवा के झोंके से उसमें हलचल तो होती है। तुझमें तो वो भी नहीं।
सुना है कि तेरी लाठी में आवाज नहीं होती है, हां सच है इसलिये तुझे मानने वालों को उस लाठी की मार सहनी पड़ती है। जिस स्वर्ग की चाहत में लोग तुझे मानते है उसको किसी ने नहीं देखा है। विश्वास उस पर होता है जिसको देखा जा सकता है और सच है कि कभी वो भी नहीं होता। क्योंकि अगर बिना देखे तेरा अस्तित्व है तो उसी तरह बिना दिखे शैतान का भी अस्तित्व है। जब तुम खुद के मानने वालो की परीक्षायें लेते हो तो मै क्यों न शैतान के पास चला जाउं, हो सकता है कि वो मुझे अपना ले। भविष्य किसने देखा है। दुख होगा कि तुझे छोड़कर मै शैतान के पास जा रहा होउंगा... लेकिन तुझे उससे शायद ही कोई फर्क पड़े। क्योंकि तुझे ऐसे मानने वाले कई है जो तुझ पर विश्वास करके परेशान होते रहते है। लेकिन चूं तक नहीं करते है। लेकिन मै करुंगा क्योंकि मै तुझे पूजने वालों से कहीं ज्यादा तुझे मानता था। लेकिन अगर ये सब तुम कर रहे हो तो क्यों?

बस अब बहुत हुआ तुमसे कुछ कहना बेकार है , सिर्फ एक पत्थर का बुत मुझे मेरे सवालों का जवाब नहीं दे सकता है। अगर तुमने दिया भी तो कोई समझ नहीं पायेगा, क्योंकि मै तेरा पूजने वाला हूं, मै इतना समझदार नहीं हूं कि तेरे इशारे समझ पाउं। मेरे भविष्य़ को सिर्फ बिगाड़ने के लिये अपने पास मत रख, मत लिख। लेकिन मुझे छोड़ना भी मत नहीं तो मै अकेला हो जाउंगा, लेकिन अपने पास रखकर कम से कम चोट मत पहुंचा..... तुझे ये भी नहीं कह सकता कि मुझे छोड़ दे, क्योंकि तुझसे अलग होने का डर है कि तू चला गया तो मेरा क्या होगा। मुझे ये भी मालूम है अब तक का मेरा कुछ भी कहना बेकार हो गया है। इसलिये मै अब जाना चाहता हूं, 
अब तेरी बारी है बोलने की।

और इतना कहकर वो आदमी चला गया। पता नहीं कहां, किस दिशा में, लेकिन वो चला गया, एक क्षण पलटकर भी तो नहीं देखा उसने। कहते है कि भगवान को पीठ नहीं दिखानी चाहिये लेकिन इतनी लड़ाई के बाद वो शायद भगवान को अपना मुंह भी नहीं दिखा पा रहा होगा। या शायद इतनी ज्यादा शिकायतें सुनने के बाद भगवान अपना मुंह छुपा रहे हो, लेकिन मुड़. न सकने की कमज़ोरी के कारण उस आदमी ने भगवान की ही मदद की थी....वो चलता चला गया पीछे न मुड़ा।

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दुश्मन भगवान (द्वितीय भाग)

Posted by शशांक शुक्ला on मंगलवार, जुलाई 13, 2010 in
पिछले भाग में बताया था भगवान के दरबार में शिकायत लेकर पहुंचा एक युवक.....इसको नौकरी की सख्त ज़रुरत थी उसे नौकरी के लिये कॉल आया....
अब आगे

एच आर थोड़ा सा परेशान, मै तुमसे माफी मांगता हूं, तुम्हारा समय खराब किया मैने...
"क्यों सर क्या हुआ" मैने पूछा।
"देखों तुम्हारी जगह किसी और को रखना था वो नहीं आ रहा था तो तुम्हे फाइनल कर दिया गया था लेकिन…. अब वो आ गया है। इसलिये अभी तुम्हे नहीं ऱख सकते है"
"पर सर....असल में हुआ क्या है। सच सच बतायेंगे.."
"देखो तुम तो जानते ही हो...कभी कभी ऐसा होता है, कोई ऐसा है जो तुम्हें यहां नहीं चाहता है जिसकी वजह से हम लोगों को नीचा देखना पड़ रहा है.... बस इतना ही कहेंगे की तुम्हे नहीं रख सकते है। तुमको काल किया जायेगा। जब ज़रुरत होगी"

उस वक्त कुछ जवाब नहीं सूझा  क्योंकि दिमाग पूरी तरह से शांत हो चुका था, दिल में कोई प्रतिक्रिया नहीं थी क्योंकि अक्सर पता नहीं क्यों ऐसे मौकों पर मन शांत हो जाया करता है, मेरी प्रकृति ही ऐसी है. जबकि अक्सर लोग सामने वाले की बखिया तक उधेड़ डालते है। मेरा दिमाग शांत रहने की ही सलाह देता है। हर बार पता नहीं क्यों ऐसा कुछ हो जाता है कि जिसका कोई हल नहीं सूझता है। हो सकता है कि ये सबके साथ होता हो लेकिन मेरा साथ में भी बहुत लोग है लेकिन उनके साथे ऐसा कम सुनने में आता है।
         उस दिन के बाद से भगवान तुझसे मेरी लड़ाई सी हो गयी है। हालांकि ये एक शीत युद्ध जैसा है जिसमें हम सीधे एक दूसरे पर हमला नहीं करते है लेकिन तैयारियां पूरी रखते है। भगवान भी अपनी तरफ से पूरी तैयारी करके रखता है, ऐसे लोगों को सामने ला खड़ा करता है जो न जानते और न ही पहचानते है फिर भी दुश्मनी पक्की निभाते हैं....मेरा बुरा करने की सोचते है। इसमें मै किसी और को दोष भी नहीं दे सकता हूं। दिन बढते गये और दुश्मनी और गहरी होती चली गयी। पहले सिर्फ उनके सामने अगरबत्तियां नहीं जलायी लेकिन अब तो चीज़े बढ गयी है। उसने मेरी जेबें खाली कर दी है। और मैने उसको मानने वालो को। दिन ब दिन मानसिक परेशानी को झेलता हुआ आगे बढ़ रहा हूं। भविष्य बिलकुल अंधकार में दिख रहा है लेकिन कुछ नज़र न आने के बावजूद रुककर कर भी क्या सकता हूं इसलिये आगे बढ़ा चला जा रहा हूं। सुबह न चाह कर भी देऱ से सो कर उठता हूं लेकिन उसका भी कोई फायदा नहीं होता.... क्योंकि रात में फिर नींद भी देर से ही आती है। दोपहर में खाना नहीं खाता कि क्योंकि कभी तो भूख नहीं लगती है....तो कभी ये सोचता हूं कि यार पैसे बहुत खर्च हो रहे है घर से कब तक मांगता रहुंगा। दिन में एक बार खाकर भी सोचता हूं कि यार राशन खत्म होता जा रहा है लेकिन खरीद कर लाने के लिये कुछ भी नहीं बच रहा है। जेबें खाली हो गयी है।

मुझे दिन याद है कि जब भी मै परेशान होता था तो मेरी मां ने मुझसे कहा था कि भगवान सब ठीक करेंगे.....और हर बार की तरह मै भगवान के पास जाकर कुछ मांगने की कोशिश करता था। लेकिन क्या कभी कुछ मिला......पता नहीं या शायद याद नहीं क्योंकि कभी नहीं मिला। पंडितो को हाथ दिखाये, अंगूंठियां बनवाई..... लेकिन हालत बद से बद्तर होते चले गये। यहां तक की अपने ही मेहनत के पैसे लेने के लिये नाको चने चबाने पड़ गये। लेकिन इतना घिसटने के बाद जाकर मिले पैसे कहां गये। उन खर्च में जो ज़रुरी थे। क्या हुआ उन पैसो का, ज्यादातर तो भविष्य को देखते हुए राशन में ही लग गये। जबकि उन पैसो में से सबसे पहले भगवान को प्रसाद चढ़ाने गया था। हां ये अलग बात है कि अगर उसका अस्तित्व है तो भी उसने इस काम में मेरी मदद बिलकुल नहीं की है। और ये बात में डंके की चोट पर कह सकता हूं। क्योंकि अपनी मेहनत के पैसो को लेने के लिये लड़ना पड़े तो शायद किसी को भगवान के अस्तित्व में विश्वास नहीं होगा। मेरे कमरे में मनहूसियत छाई रहती है, पूरे पूरे दिन अगर फोन न बजे तो कोई आवाज नहीं गूंजती।

नौकरी के सिलसिले में जाते वक्त जाते हर रोज मै उसको याद करता हूं। लेकिन उसे याद करने का क्या फायदा........यहां तक कि उसकी दी हुई उस नौकरी का क्या फायदा जिसको करने के बाद भी आज मैं बेकार हूं। हमारे पास कुछ भी नहीं है। क्यों करुं विश्वास..... क्यों। जिसके आगे सर झुकाता हूं उसको मेरी क्या फिक्र है...... उसे क्या फिक्र है कि मै किस मानसिक पीड़ा से गुज़र रहा हू। क्या मांग लेता हूं मै कि उसको देने में इतनी हिचक दिखाता है वो।
कई लोगों ने मुझको सांत्वना भी दी..... भगवान सब ठीक करता है। क्या ठीक किया उसने अभी तक मेरे साथ, पिछले जितने भी साल मैने जिये है वो कौन से पल है जिसमें उसने मुझे वो खुशी दी है जिसको याद करके मै आज भी खुश हो सकूं। क्या दिया है उसने। जो भी दिया.. पल भर में छीन लिया। आज मै फिर खाली हाथ हूं..... कुछ नहीं है मेरे पास। क्या करुं कुछ कर भी नहीं सकता। किससे शिकायत करुं। जिससे शिकायत किया करता था अबकी बार तो उसके खिलाफ ही शिकायत करनी है। आखिर किससे करुं शिकायत।


कहानी का अगला भाग कुछ दिन बाद....पढ़ना न भूलें और टिप्पणी कर मुझे भी अवगत कराएं की मेरी कोशिशे कैसी है 

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